पिछले कुछ दिनों में मैंने कितने ही लेख पढ़े, कितनी टिप्पणियां देखीं, अमिताभ बच्चन की कविता भी पढ़ी।
ज़्यादातर बड़े बड़े नेता, कुछ बहुत पढ़ी लिखी औरतें, और कुछ आध्यात्म के क्षेत्र के दिग्गज, सबने खूब जी भर के टिपण्णी की कि लड़कियों को क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए- कहाँ किस वक़्त जाएँ, क्या पहने, हमला हो तो क्या करें? क्या सचमुच ये समाज ये गारंटी देगा कि इनके मापदंड के हिसाब से चलेंगे तो इज्ज़त बची रह जाएगी? इतिहास तो कुछ और ही कहता है।
कोई ये क्यूँ नहीं सोच रहा की नैतिकता के स्तर पर अपने आप को इतना ऊंचा मानने वाला ये देश और ये समाज, इस में आखिर क्या कमी रह गयी है? हमारी परवरिश में क्या कमी रह गयी, हमारी शिक्षा प्रणाली में क्या गलत है जो रोज़ औरतों के साथ होते हुए ज़ुल्म गिनना मुश्किल हो गया है- चाहे वो दहेज़ हो, भ्रूण हत्या हो, छेड़खानी हो, बलात्कार हो या घरेलु हिंसा हो। ऐसा क्या हम अपने बच्चों को पढ़ाना भूल गए जो वो ऐसी घ्रणित मानसिकता का शिकार हैं? या फिर कमी हम सब में है और हम अपना बोझ किसी और पर डालने की कोशिश कर रहे हैं।
हमेशा हमसे ये कहा जाता है की पुराने समय में औरतें तलवारबाजी भी करती थी और बच्चों की परवरिश भी। और अगर खजुराहो की प्रतिमायों से उनके पहनावे का अंदाजा लगाया जाए तो आधुनिक दौर के पहनावे को मीलों पीछे छोड़ देती थीं।
मै स्कूल में थी जब माँ जिस अस्पताल में काम करती थीं, वहां एक औरत प्रसव के दौरान बहुत खून बह जाने से बहुत बीमार थी। उस बेहोशी की हालत में उसके पति ने आकर नशे की हालत में, उसकी पिटाई की, सिर्फ इसलिए की उसने एक बेटी जनी थी। इस वार को वो औरत झेल नहीं पायी और उसका देहांत हो गया। उसकी बिटिया वहीँ वार्ड में पलने लगी, क्योंकि उसके पिता ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया । नर्सें उसका खूब ध्यान रखती, और डॉक्टर नर्स कर्मचारी सब के तोहफे से लदी, उसे कभी कपड़ों की कमी नहीं होती थी। लेकिन आखिर कब तक, इसलिए लिखा पढ़ी की गयी की एक निःसंतान दम्पति उसे गोद ले पायें।
लिखा पढ़ी पूरी करने के लिए अखबार में उसके पिता के नाम इश्तिहार दिया गया, की अगर वो अपनी बेटी को अपनाना चाहे, तो ऐसा कर सकता है। सब आश्चर्यचकित रह गए, जब वो आया और अपनी बेटी को ले गया। फिर पता लगा उसने कुछ हज़ार रुपयों के लिए उसे बेच दिया। शायद वो बच्ची उस हैवान से अलग रह कर ठीक ही होगी- लेकिन ये उसकी किस्मत है।
लडके की चाह में जाने कितनी औरतें गरीबी की आग में झुलसे शरीर के साथ गर्भधारण करती हैं, कुछ गर्भपात करवाती हैं,कुछ कमज़ोर बच्चों को जनम देती हैं, खुद कमज़ोर और आत्म विश्वास हीन रह जाती हैं क्योंकि अपने आप को निःसहाय महसूस करती हैं। ज्यादा से ज्यादा सफ्दर्जंग अस्पताल में अक्सर अपनी पांचवी या छठी बेटी का गला घोंट देती थीं या एक बार एक औरत ने डॉक्टर से कहा था, बच्चा बदल दो, बेटा हमे दे दो।
चक दे इंडिया जैसी पिक्चरें बने, तो लड़कियों का आत्मविश्वास जागे। आम तौर पर, हर तस्वीर में यही दिखाया जाता है की औरत एक गुड़िया है, हीरो प्यार से खेलता है, विलन हीरो को हीरो का खिताब दिलाने के लिए कुछ ऐसी वैसी हरकत करता है और फिर गुड़िया तो गुड़िया ही है, जिसका खुद का कोई वजूद नहीं, जो चोर डाकू, अपहरंकर्ता सबसे प्यार कर बैठती है।
शर्मीला टैगोर से कुछ मुश्किल सवालात किये गए आज के आइटम नंबर के दौर के ऊपर और उन्होंने कुछ गोल मोल जवाब दिए- कहा कि सेक्स, हिंसा, आइटम नंबर इन सब चीज़ों से पिक्चर बिकती है- तभी तो "लगे रहो मुन्ना भाई" और "3 इडियट्स" जैसी पिक्चरें हिट होती हैं। कोई जिम्मेवारी खुद नहीं लेना चाहता- दोष किसी और का हमेशा होता है।
टाइगर पटौदी से अपनी शादी के बारे में बात करते हुए उन्होंने एक बात कही- Thank God for young people! They will continue to break the mould! सच है, युवा पीढ़ी है, तो आस है!!! आस है कि एक दिन वो सुबह आएगी जब हर बच्ची को प्यार और इज्ज़त नसीब होगी।
ज़्यादातर बड़े बड़े नेता, कुछ बहुत पढ़ी लिखी औरतें, और कुछ आध्यात्म के क्षेत्र के दिग्गज, सबने खूब जी भर के टिपण्णी की कि लड़कियों को क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए- कहाँ किस वक़्त जाएँ, क्या पहने, हमला हो तो क्या करें? क्या सचमुच ये समाज ये गारंटी देगा कि इनके मापदंड के हिसाब से चलेंगे तो इज्ज़त बची रह जाएगी? इतिहास तो कुछ और ही कहता है।
कोई ये क्यूँ नहीं सोच रहा की नैतिकता के स्तर पर अपने आप को इतना ऊंचा मानने वाला ये देश और ये समाज, इस में आखिर क्या कमी रह गयी है? हमारी परवरिश में क्या कमी रह गयी, हमारी शिक्षा प्रणाली में क्या गलत है जो रोज़ औरतों के साथ होते हुए ज़ुल्म गिनना मुश्किल हो गया है- चाहे वो दहेज़ हो, भ्रूण हत्या हो, छेड़खानी हो, बलात्कार हो या घरेलु हिंसा हो। ऐसा क्या हम अपने बच्चों को पढ़ाना भूल गए जो वो ऐसी घ्रणित मानसिकता का शिकार हैं? या फिर कमी हम सब में है और हम अपना बोझ किसी और पर डालने की कोशिश कर रहे हैं।
हमेशा हमसे ये कहा जाता है की पुराने समय में औरतें तलवारबाजी भी करती थी और बच्चों की परवरिश भी। और अगर खजुराहो की प्रतिमायों से उनके पहनावे का अंदाजा लगाया जाए तो आधुनिक दौर के पहनावे को मीलों पीछे छोड़ देती थीं।
मै स्कूल में थी जब माँ जिस अस्पताल में काम करती थीं, वहां एक औरत प्रसव के दौरान बहुत खून बह जाने से बहुत बीमार थी। उस बेहोशी की हालत में उसके पति ने आकर नशे की हालत में, उसकी पिटाई की, सिर्फ इसलिए की उसने एक बेटी जनी थी। इस वार को वो औरत झेल नहीं पायी और उसका देहांत हो गया। उसकी बिटिया वहीँ वार्ड में पलने लगी, क्योंकि उसके पिता ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया । नर्सें उसका खूब ध्यान रखती, और डॉक्टर नर्स कर्मचारी सब के तोहफे से लदी, उसे कभी कपड़ों की कमी नहीं होती थी। लेकिन आखिर कब तक, इसलिए लिखा पढ़ी की गयी की एक निःसंतान दम्पति उसे गोद ले पायें।
लिखा पढ़ी पूरी करने के लिए अखबार में उसके पिता के नाम इश्तिहार दिया गया, की अगर वो अपनी बेटी को अपनाना चाहे, तो ऐसा कर सकता है। सब आश्चर्यचकित रह गए, जब वो आया और अपनी बेटी को ले गया। फिर पता लगा उसने कुछ हज़ार रुपयों के लिए उसे बेच दिया। शायद वो बच्ची उस हैवान से अलग रह कर ठीक ही होगी- लेकिन ये उसकी किस्मत है।
लडके की चाह में जाने कितनी औरतें गरीबी की आग में झुलसे शरीर के साथ गर्भधारण करती हैं, कुछ गर्भपात करवाती हैं,कुछ कमज़ोर बच्चों को जनम देती हैं, खुद कमज़ोर और आत्म विश्वास हीन रह जाती हैं क्योंकि अपने आप को निःसहाय महसूस करती हैं। ज्यादा से ज्यादा सफ्दर्जंग अस्पताल में अक्सर अपनी पांचवी या छठी बेटी का गला घोंट देती थीं या एक बार एक औरत ने डॉक्टर से कहा था, बच्चा बदल दो, बेटा हमे दे दो।
अमानत की कहानी ने सारे देश को झकझोर के रख दिया है लेकिन अफ़सोस की बात ये है की ये समस्या नई नहीं है। हजारों की तादात में बच्चे बच्चियां ऐसी सी दरिंदगी के शिकार बन चुके हैं और समाज, सरकार, पुलिस, कचहरी किसी ने उनकी आगे बढ़कर मदद करना तो दूर, हर किसी ने उनके साथ वो सलूक किया जो ज़ुल्म करने वाले न की सहने वाले के साथ होना चाहिए । उन पर इलज़ाम है की वो न्याय की मांग कर रही हैं, सब कुछ खो कर भी अपनी निराशा और आक्रोश को अपनी शक्ति बना कर समाज और देश के ठेकेदारों के खिलाफ आवाज़ उठाने की जुर्रत कर रहीं हैं।
भारतीय संस्कृति को नैतिक दृष्टि से बेहतर मानने वाले लोग अपने अन्दर झाँक के देखें-
क्यों आखिर क्यों ये आम सी बात है कि लडकियों के साथ छेड़खानी होगी, वो अगर किसी लडके के साथ हैं तो उनके ऊपर निर्णायक टिपण्णी के साथ फत्वाह जारी कर दिया जायेगा, उन्होंने क्या पहना है वो बहाना बन जाएगा औचित्य बन जाएगा उनपर ज़ुल्म करने का।
चक दे इंडिया जैसी पिक्चरें बने, तो लड़कियों का आत्मविश्वास जागे। आम तौर पर, हर तस्वीर में यही दिखाया जाता है की औरत एक गुड़िया है, हीरो प्यार से खेलता है, विलन हीरो को हीरो का खिताब दिलाने के लिए कुछ ऐसी वैसी हरकत करता है और फिर गुड़िया तो गुड़िया ही है, जिसका खुद का कोई वजूद नहीं, जो चोर डाकू, अपहरंकर्ता सबसे प्यार कर बैठती है।
शर्मीला टैगोर से कुछ मुश्किल सवालात किये गए आज के आइटम नंबर के दौर के ऊपर और उन्होंने कुछ गोल मोल जवाब दिए- कहा कि सेक्स, हिंसा, आइटम नंबर इन सब चीज़ों से पिक्चर बिकती है- तभी तो "लगे रहो मुन्ना भाई" और "3 इडियट्स" जैसी पिक्चरें हिट होती हैं। कोई जिम्मेवारी खुद नहीं लेना चाहता- दोष किसी और का हमेशा होता है।
टाइगर पटौदी से अपनी शादी के बारे में बात करते हुए उन्होंने एक बात कही- Thank God for young people! They will continue to break the mould! सच है, युवा पीढ़ी है, तो आस है!!! आस है कि एक दिन वो सुबह आएगी जब हर बच्ची को प्यार और इज्ज़त नसीब होगी।
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